प्रदर्शनियों

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विशेष प्रदर्शनियां ( अतीत प्रदर्शनी )

राजभाषा : उद्भव से लक्ष्य की ओर सतत गतिशील

आरंभ तिथि: 20-09-2024  समाप्त तिथि: 20-10-2024    National Museum, New Delhi
"राजभाषा : उद्भव से लक्ष्य की ओर सतत गतिशील" "जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं, वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।" देश को समर्पित ये उपर्युक्त प्रस्तुत पंक्तियां देशवासी को देश प्रेम की ओर उद्वेलित करती है जो भाषा, साहित्य, कला, संस्कृति आदि विभिन्न माध्यमों से परिलक्षित होती है। भाषा को इसमें प्रमुखता दी गई है। किसी भी व्यक्ति की वास्तविक पहचान उसकी भाषा होती है। राष्ट्र का निर्माण व्यक्तियों से होता है और राष्ट्रभाषा अधिकांश व्यक्तियों की अपनी भाषा होती है। इस प्रकार, राष्ट्रभाषा राष्ट्र की पहचान बन जाती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था "राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है।" स्वतंत्रता के समय स्वतंत्रता सेनानी भारत के विभिन्न प्रदेशों से आए । गांधीजी गुजरात से, बालगंगाधर तिलक महाराष्ट्र से, लाला लाजपत राय पंजाब से, सुभाष चंद्र बोस बंगाल से आए। जब वे राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय हुए, तब उनमें भावाभिव्यक्ति की भाषा का प्रश्न उत्पन्न हुआ। ऐसे में देश के बड़े भू- भाग तक अपनी बात पहुंचाने के लिए उन्होंने हिन्दी को अपनाया। यहीं से हिन्दी राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुई। आजादी के बाद देश के तत्कालीन जननायकों और जनप्रतिनिधियों ने संविधान निर्मात्री सभा में 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया जिसकी लिपि देवनागरी रखी गई। इसी के उपलक्ष्य में देश में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है। इस पखवाड़े पर इस प्रदर्शनी को लगाने का उद्देश्य है - जनमानस के बीच हिंदी का प्रचार-प्रसार करना और हिंदी के प्रति उनके स्वाभिमान को जागृत करना। ऑडियो-वीडियो की सुंदर प्रस्तुति के साथ इस प्रदर्शनी को निम्नांकित 6 खंडों में बांटा गया है- 1. हिंदी का उद्भव एवं विकास 2. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदी की भूमिका 3. संविधान सभा में राजभाषा संबंधी बहस 4. राजभाषा के रूप में हिंदी 5. विश्व हिंदी सम्मेलन । 6. भारतीय कलाकृतियों में दृष्टिगोचर देवनागरी लिपि । इस प्रदर्शनी में जहां एक ओर हिंदी के विधि-विधान पर प्रकाश डाला गया है वहीं दूसरी ओर, विश्व हिंदी सम्मेलन की आंशिक झलकियां भी दिखाई गई है। यह स्पष्ट है कि किसी भी भाषा के साहित्य में वहां की संस्कृति की गहरी छाप होती है। कोई भी भाषा वहां की संस्कृति के बिना आगे नहीं बढ़ सकती। भाषा के शब्दों में सौंदर्य और रोचकता का श्रेय संस्कृति को ही जाता है जो उस क्षेत्र की प्रकृति के अनुसार ही होती है और हिंदी, अन्य सभी भारतीयों भाषाओं से समन्वय बनाते हुए भारतीय संस्कृति और विरासत को प्रदर्शित करती है। इसी को दृष्टि में रखते हुए इस प्रदर्शनी में कला एवं संस्कृति के परिचायक के रूप में राष्ट्रीय संग्रहालय की उन पुरावशेषों/कलाकृतियों को भी प्रदर्शित किया गया है जिसमें देवनागरी लिपि का अंकन है। ये पुरावशेष पांडुलिपि, पुरातत्व, प्राक्-कोलंबियन और पश्चिमी कलाएं, मुद्रा एवं अभिलेख, सुसज्जात्मक कलाएं और चित्रकला से संबंधित हैं। उपर्युक्त सभी खंडों का चित्र सहित विशद वर्णन प्रस्तुत किया गया है जिसे देखकर जनमानस अपनी संस्कृति एवं विरासत को देखकर गौरव की अनुभूति तो करेंगे। साथ ही, हिंदी में कार्य करने के लिए उद्धत भी होंगे। यों तो राष्ट्रीय संग्रहालय में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी आयोजित की जाती रही हैं। लेकिन, राजभाषा हिंदी पर आयोजित यह प्रदर्शनी संभवतः देश में अपने प्रकार की पहली है । 20 सितंबर, 2024 को शाम 4 बजे इस प्रदर्शनी का उद्घाटन मुख्य अतिथि श्रीमती अंशुली आर्या , भा.प्र. से. सचिव, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार और विशिष्ट अतिथि श्री गुरमीत सिंह चावला, संयुक्त सचिव संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा श्री आशीष गोयल, अपर महानिदेशक, राष्ट्रीय संग्रहालय की उपस्थिति में किया गया। डॉ. बुद्धरश्मि मणि, महानिदेशक, राष्ट्रीय संग्रहालय ने स्वागत वक्तव्य दिया। यह प्रदर्शनी जनसामान्य के लिए 20 सितंबर, 2024 से 20 अक्टूबर, 2024 तक सुबह 10:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक (सोमवार और राष्ट्रीय अवकाश को छोड़कर) खुली रहेगी।
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